
क्यों 9 अगस्त भारत के इतिहास में एक निर्णायक क्षण है: भारत छोड़ो आंदोलन
Kotatimes
Updated 5 years ago

भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement)
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का आखिरी सबसे बड़ा आंदोलन था, जिसमें सभी भारतवासियों ने एक साथ बड़े स्तर पर भाग लिया था। देश में कई जगह समानांतर सरकारें भी बनाई गईं, स्वतंत्रता सेनानी भूमिगत होकर लड़े।
द्वितीय-विश्वयुद्ध (SECOND WORLD WAR) के समय इस आन्दोलन की शुरुवात हुई थी। औपनिवेशिक देशों के नागरिक स्वतंत्रता के प्रति जागरूक हो रहे थे और कई देशों में साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद के खिलाफ आंदोलन तेज़ होते जा रहे थे।
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आंदोलन के बारे में
14 जुलाई, 1942 को वर्धा में congress की कार्यकारिणी समिति ने ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन’ (Quit India Movement) का प्रस्ताव पारित किया एवं इसकी सार्वजनिक घोषणा से पहले 1 अगस्त को इलाहाबाद (Prayagraj) में तिलक दिवस मनाया गया।
8 अगस्त 1942 को ALL INDIA CONGRESS की बैठक बंबई (MUMBAI) के ग्वालिया टैंक मैदान में हुई और ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन’ (Quit India Movement) के प्रस्ताव को मंज़ूरी मिली।
भारत छोड़ो आंदोलन को ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से भी जाना जाता है।
इस आंदोलन का लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काकोरी कांड के ठीक 17 साल बाद 9 AUGUST 1942 को गांधीजी के आह्वान पर पूरे देश में एक साथ आरंभ हुआ।
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आंदोलन की पृष्ठभूमि
दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हो चुकी थी और इसमें मित्र राष्ट्र हारने लगे थे। मित्र देश, अमेरिका, रूस व चीन ब्रिटेन पर लगातार दबाव डाल रहे थे कि वह भारतीयों का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करे। अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होंने स्टेफ़ोर्ड क्रिप्स को मार्च 1942 में भारत भेजा। भारतीयों की मांग पूर्ण स्वराज थी, जबकि ब्रिटिश सरकार भारत को पूर्ण स्वराज नहीं देना चाहती थी। वह भारत की सुरक्षा अपने हाथों में ही रखना चाहती थी और साथ ही गवर्नरजनरल के वीटो के अधिकार को भी बनाए रखने के पक्ष में थी। भारतीय प्रतिनिधियों ने क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद 'भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस समिति' (ALL INDIA CONGRESS) की बैठक 8 अगस्त, 1942 को बंबई में हुई। इसमें यह निर्णय लिया गया कि भारत अपनी सुरक्षा स्वयं करेगा और साम्राज्यवाद तथा फासीवाद का विरोध करता रहेगा।
इसके पश्चात् काॅन्ग्रेस भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव लाई जिसमें कहा गया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत अपने सभी संसाधनों के साथ फासीवादी और साम्राज्यवादी ताकतों के विरुद्ध लड़ रहे देशों की ओर से युद्ध में शामिल हो जाएगा। इस प्रस्ताव में देश की स्वतंत्रता के लिये अहिंसा पर आधारित जन आंदोलन की शुरुआत को अनुमोदन प्रदान किया गया।
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भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने के बाद ग्वालिया टैंक मैदान में गांधीजी जी ने कहा कि,
“ एक छोटा सा मंत्र है जो मैं आपको देता हूँ। इसे आप अपने ह्रदय में अंकित कर लें और अपनी हर सांस में उसे अभिव्यक्त करें। यह मंत्र है-“करो या मरो”। अपने इस प्रयास में हम या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या फिर जान दे देंगे।”
इस तरह भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ एवं ‘करो या मरो’ भारतीयों का नारा बन गया।
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