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स्वच्छता सर्वेक्षण में देशभर के 47 शहरों में से कोटा 44वें नम्बर पर रहा

Kotatimes

Updated 4 years ago

KOTATIMES AUGUST 20, 2020। भारत सरकार ने स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 के परिणामों की घोषणा कर दी है। इसमें राजस्थान का कोई बड़ा शहर टॉप 20 में भी जगह नहीं बना पाया है। देशभर के 47 शहरों में से जयपुर 28वें, जोधपुर 29वें और कोटा 44वें नम्बर पर रहा है। वर्ष 2019 में कोटा 302 और वर्ष 2018 में 101वें नम्बर पर रहा था। इससे पहले 2017 में 341 वें नम्बर पर रहा है। इस तरह कोटा ने काफी सुधार किया है, लेकिन देश में टॉप 20 में भी जगह नहीं बना पाया। कोटा का 44वां नम्बर 47 शहरों में से है। पिछले वर्षों की तुलना में इस तरह कोटा ने बड़ी छलांग लगाई है। वहीं देश में एक बार फिर से इंदौर ने बाजी मारी है। सरकार द्वारा जारी स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 में इंदौर इस साल भी टॉप पर है। वहीं गुजरात का सूरत शहर दूसरे स्थान पर है। इंदौर पिछले तीन साल से टॉप पर रहा है और यह उसका लागातार चौथा साल है। इससे पहले चार बार इस तरह का सर्वेक्षण हो चुका है। सरकार की इस लिस्ट में तीसरा स्थान नवी मुंबई का है। गंगा किनारे बसे शहरों में उत्तर प्रदेश की आध्यात्मिक राजधानी वाराणसी अव्वल है। वहीं बिहार की राजधानी पटना सबसे निचले पायदान पर है। करीब एक महीने चले इस सर्वेक्षण के दौरान एक करोड़ 70 लाख नागरिकों ने स्वच्छता ऐप पर पंजीकरण किया। सोशल मीडिया पर 11 करोड़ से अधिक लोग इससे जुड़े। साढ़े पांच लाख से अधिक सफाई कर्मचारी सामाजिक कल्याण योजनाओं से जुड़े और ऐसे 21 हजार स्थानों की पहचान की गई, जहां कचरा पाए जाने की ज्यादा संभावना है।


एयरपोर्ट के निजीकरण का किया विरोध

 
अखिल भारतीय बेरोजगार मजदूर किसान संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज दुबे ने मोदी सरकार के द्वारा जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट का भी निजीकरण करते हुए निजी हाथों में सौपे जाने की तीव्र निन्दा करते हुए कहा कि देश नही बिकने देने की बात करने वाले एक-एक कर सरकारी संस्थानों को बेच व निजी हाथों में सौप रहे है। जिससे देश मे रोजगार के अवसर तेजी से समाप्त हो रहे है। मोदी सरकार सरकारी संस्थानों को निजी हाथों में सौपना बन्द करे।
दुबे ने कहा कि मोदी सरकार ने एलआईसी बेचा, रेल बेची, स्टेशन बेचे, एयरपोर्ट सहित 28 से ज्यादा सरकारी संस्थानों को बेच दिया व कई संस्थानों को निजी हाथों में सौप दिया। मोदी सरकार का देश के बेरोजगार युवाओं से वायदा था 2 करोड़ बेरोजगारों को प्रति वर्ष रोजगार देने का लेकिन नए सरकारी संस्थानों को स्थापित कर रोजगार के अवसर पैदा करने के स्थान पर सरकार ने आजादी के बाद वर्षो की मेहनत से स्थापित किए गए सरकारी संस्थानों को ही बेच कर बेरोजगार युवाओं की रोजगार पाने की आशाओं पर ही पानी फेर दिया।

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